खशोगी तो सिर्फ पत्रकार थे, सत्ता में बैठे सऊदी शाह ने अपने 4 राजकुमारों को भी नहीं छोड़ा
रियाद/जर्मनी. अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की तुर्की स्थित सऊदी अरब के दूतावास में हुई हत्या ने सऊदीकी सत्ता पर काबिज राजघराने के उस डरावने पक्ष को सामने ला दिया, जो अब तक कयासों के पर्दे में छुपा था। यह डरावना पक्ष है सत्ता और राजघराने के खिलाफ बोलने वालों की आवाज हमेशा के लिए दबा देने और उन्हें गायब कर देने का, वो भी उन तरीकों से जो ज्यादातर हॉलीवुड फिल्मों की कहानियों जैसे लगते हैं।
चाहे वो सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने वाले सोशल एक्टिविस्ट हों, खशोगी जैसे पत्रकार हों या फिर शाही परिवार से जुड़े दूसरे प्रिंस और सुल्तान ही क्यों न हों, सऊदी अरब में ऐसे मामले नए नहीं हैं। किंग सलमान और फिर उनके बेटे मोहम्मद बिन सुल्तान के सऊदी की सत्ता संभालने के बाद ऐसे मामले काफी तेजी से बढ़े हैं।2015 से 2017 के बीच सऊदी अरब के हुक्मरानों के इशारे पर विदेश में शरण लिए बैठे तीन राजकुमार रहस्मय तरीके से लापता हो गए। इनका अपराध ये था कि इन्होंने सत्ता के विरोध में आवाज उठाई थी।
सऊदी अरब के शाह सलमान ने जून 2017 में अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान को सऊदी अरब का क्राउन प्रिंस बनाया। 33 साल के मोहम्मद बिन सलमान अब खशोगी मर्डर केस में सवालों के घेरे में है। किंग सलमान साल 82 साल के हैं। वे 2015 में अपने भाई अब्दुल्लाह बिन अजीज के निधन के बाद सऊदी अरब के शाह बने थे।
2003 में सऊदी अरब में अपने चाचा शाह सलमान बिन अब्दुल्लाअजीज अल सऊद की सत्ता से बगावत कर प्रिंस सुल्तान बिन तुर्की पहले स्विट्जरलैंड और फिर पेरिस में रहने लगे। बिन तुर्की को उनके दोस्तों और साथियों ने आखिरी बार जनवरी 2016 में देखा था।वे लंबे वक्त से सऊदी की पकड़ से बाहर थे।
बिन तुर्कीयूरोप से ही सऊदी शाह के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। फरवरी में अपने बीमार पिता से मिलने के लिए बिन तुर्की पेरिस से मिस्र की राजधानी काहिरा के लिए रवाना हुए। लेकिन उनका प्लेन काहिरा की बजाय सऊदी अरब की राजधानी रियाद में उतरा। तुर्की के साथ उनका कुछ विदेशी स्टाफ भी था।
स्टाफ के मुताबिक जब सुल्तान को यह अहसास हुआ कि वे काहिरा नहीं रियाद में उतरे हैं तो उन्होंने कॉकपिट के बाहर स्टाफ से मिन्नतें भी कीं। लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्हें घसीटते हुए प्लेन से बाहर निकाला गया। इसके बाद उन्हें किसी से नहीं देखा। विदेशी स्टाफ को कुछ दिन बाद छोड़ दिया गया। स्टाफ ने बताया कि प्लेन में मौजूद स्टाफ कोई और नहीं बल्कि सऊदी एजेंट थे।
बिन तुर्की का मामला इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि उन्हें दो बार किडनैप किया गया। सबसे पहले 2003 में स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित उनके चाचा के महल से सऊदी एजेंट उन्हें उठा ले गए थे। इस महल में बिन तुर्की और उनके चचेरे भाई अब्दुलअजीज बिन फाद की मुलाकात नाश्ते की मेज पर हुई। फाद ने तुर्की को सऊदी लौटने और शाह से समझौते की सलाह दी। लेकिन तुर्की तैयार नहीं हुए।
मुलाकात के दौरान फाद एक फोन कॉल करने के लिए दूसरे कमरे में गए और इसी बीच मास्क पहने एजेंटों ने तुर्की को अपने कब्जे में ले लिया। उनकी गर्दन में एक इंजेक्शन लगाया। हाथ-पैर बांध कर एंबुलेंस में डाला और सीधे जिनेवा एयरपोर्ट ले गए। यहां एक प्लेन तैयार खड़ा था। तुर्की को रियाद लाया गया। 2010 तक तुर्की पहले जेल में और फिर नजरबंद रहे। 2010 में किसी तरह तुर्की सऊदी से अमेरिका भागने में कामयाब रहे थे।
2015 में सऊदी राजघराने के एक और राजकुमार प्रिंस तुर्की बिन बंदार लापता हो गए। बंदार पहले सऊदी पुलिस के प्रमुख थे। राॅयल फैमिली की सुरक्षा भी उनके जिम्मे थी। बाद में संपत्ति और अधिकारों को लेकर सत्ता पक्ष से उनके रिश्ते बिगड़े। वे कुछ वक्त कैद रहे, फिर 2012 में कैद से छूटकर पेरिस में शरण ली। यहां से यूट्यूब पर वीडियो पोस्ट कर सऊदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
सऊदी सरकार ने समझौते के बहाने कई बार बिन बंदार को वापस बुलाने का प्रयास किया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। जुलाई 2015 तक तुर्की बिन बंदार का विरोध अभियान जारी रहा। इसके बाद वे गायब हो गए। पता चला कि फ्रांस से वे मोरक्को गए थे। जहां सऊदी के इशारे पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में सऊदी अरब के एजेंट उन्हें रियाद ले गए। इसके बाद से बंदार का कोई अता-पता नहीं है। कहा जाता है कि उन्हें कैद में मार दिया गया।
सऊद बिन सैफ अल नस्र हैसियत के मामले में सऊदी राजघराने में निचले पायदान पर थे। कैसिनो और लग्जरी होटलों में रहने के शौकीन प्रिंस नस्र ने 2014 में ट्विटर के जरिए सऊदी सरकार के विरोध में आवाज उठानी शुरू की। नस्र का ठिकाना इटली के मिलान शहर में था। 2015 में नस्र के अपने समर्थकों से शाह की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए बड़े प्रदर्शन करने की अपील की। शाह की सत्ता तो बनी रही लेकिन नस्र दुनिया की नजरों से ओझल हो गए।
कहा जाता है कि इस दौरान उनके पास एक रूसी कंपनी की ओर से बिजनेस डील का प्रस्ताव आया। कंपनी सऊदी समेत खाड़ी देशों में बिजनेस फैलाना चाहती थी। बिजनेस डील रोम में होना तय हुई। कंपनी की ओर से नस्र के लिए एक खास प्लेन भेजा गया। जो मिलान से रोम के लिए रवाना तो हुआ, लेकिन वहां पहुंचा नहीं। सऊदी सूत्रों के मुताबिक यह प्लेन भी रियाद में उतरा। नस्र के साथ क्या हुआ, यह आज भी रहस्य ही बना हुआ है।
खालेद बिन फरहान अल सऊद का नाता भी सऊदी अरब के राजघराने से है। खालेद 2004 में सऊदी से भागकर जर्मनी आए गए थे। अल सऊद के मुताबिक आज भी सऊदी सरकार उन्हें वापस लाने की कोशिश में लगी है। खालेद के लिए भी कई बार जाल बिछाए जा चुके हैं लेकिन खुशकिस्मती से वे बचे हुए हैं।
खालेद के मुताबिक, उनके एक रिश्तेदार के जरिए सऊदी एजेंटों ने उन्हें बड़ी रकम देने का ऑफर रखा था। उन्हें इसके लिए काहिरा स्थित सऊदी दूतावास में बुलाया गया था। लेकिन खालेद पैसा लेने नहीं गए। उनका कहना है कि यह एक साजिश थी। खालेद के मुताबिक सऊदी सरकार अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले किसी भी शख्स को नहीं छोड़ती। अगर मैं उनके झांसे में आ गया होता तो खशोगी की तरह ही मारा गया होता।
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Source: bhaskar international story