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मलावी में गांधी प्रतिमा लगाने का विरोध, याचिका में कहा- देश के ज्यादातर लोग उन्हें नहीं जानते - Update Every Time
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मलावी में गांधी प्रतिमा लगाने का विरोध, याचिका में कहा- देश के ज्यादातर लोग उन्हें नहीं जानते



लिलोंग्वे. मलावी में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। वहां की सरकार ने भी इसकी अनुमति दे दी है। प्रतिमा देश के दूसरे सबसे पुराने शहर ब्लेंटायर में स्थापित होगी, लेकिन सैकड़ों लोग ऐसा नहीं चाहते। उनका तर्क है कि गांधीजी को देश में बहुसंख्यक लोग नहीं जानते।

लोगों ने दायर की ऑनलाइन पिटीशन
तीन हजार लोगों ने प्रतिमा न लगाए जाने के लिए ऑनलाइन पिटीशन दायर की है। इसमें मलावी सरकार से मूर्ति का काम बंद करने को कहा है। पिटीशन दायर करने वाले #GandhiMustFall के नाम से अभियान चला रहे हैं। उनका तर्क है कि मलावी से गांधीजी का सीधा कनेक्शन नहीं है। देश का बहुसंख्यक वर्ग उनके बारे में नहीं जानता।

गांधीजी के जातिवादी होने का दावा
मूर्ति का विरोध करने वालों का दावा है कि गांधीजी जातिवादी थे। उनका कहना है कि गांधीजी ने कभी यह विचार नहीं दिया कि अफ्रीकियों और भारतीयों को काम के लिए एक ही दरवाजे से प्रवेश दिया जाए। वे वास्तव में भारतीयों के लिए अफ्रीकियों से अलग प्रवेश द्वार रखने के लिए लड़े। हाल ही में जोहानिसबर्ग और क्वाजुलु नेटाल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों अश्विन देसाई और गूलम वाहिद ने दावा किया कि गांधीजी नस्लीय विचारधारा के समर्थक थे।

एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता मकोतमा विली कटेंगा भी गांधीजी की मूर्ति लगाए जाने का विरोध करते हैं। कटेंगा के मुतािबक- मलावी सरकार ने उस साहित्य को नजरअंदाज कर दिया, जिसमें गांधीजी को नस्लीय बताया गया था।

सरकार ने जारी किया बयान
मूर्ति लगाने के विरोध के चलते सरकार को बयान जारी करना पड़ा। इसमें कहा गया कि मूर्ति लगाने के लिए यह समझना जरूरी है कि महात्मा गांधी ने भारत और मलावी के लिए अभूतपूर्व काम किया। मलावी समेत अफ्रीकी देशों के ज्यादातर स्वतंत्रता सेनानी गांधीजी के विचारों से प्रभावित थे। गांधीजी अफ्रीका में मानवाधिकारों के समर्थक रहे।

मलावी की कुल आबादी एक करोड़ 80 लाख है जिसमें 8 हजार भारतीय हैं। ये लोग उद्योग, डिस्ट्रीब्यूशन और रिटेल से जुड़े हुए हैं। कुछ लोग तो पीढ़ियों से मलावी में रह रहे हैं, जब 19वीं सदी में यहां रेलवे के काम के लिए भारत से कई लोगों को लाया गया था।

इससे पहले भी अफ्रीका में हो चुका है गांधीजी का अपमान

  • अफ्रीका की धरती पर गांधीजी के अपमान का ये पहला मामला नहीं है। दो साल पहले घाना यूनिवर्सिटी में गांधीजी की मूर्ति तोड़ दी गई थी। उस दौरान भी गांधीजी को नस्लीय बताया गया था।
  • 2015 में जोहानेसबर्ग में गांधीजी की प्रतिमा पर पेंट डाल दिया गया था। दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी 21 साल (1893-1914) रहे। यहीं पर उन्होंने अहिंसक आंदोलन की शुरुआत की।

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सिम्बॉलिक फोटो

Source: bhaskar international story