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Holi - Update Every Time
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Holi

1. होलिका दहन क्यों करते हैं:-

हमारे हिंदू धर्म के अनुसार होली का विशेष महत्व है| मुख्य त्योहारों में होली मभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है

होली पर मनाने के पीछे एक कहानी प्रचलित है जिसमें एक असुर हिरण्यकश्यप नाम का राजा था जो बड़ा ही अत्याचारी एवं अत्यंत बलशाली असुर था|उसे अपनी शक्ति पर इतना घमंड था कि उसे स्वयं को राजा को घोषित कर दिया था वह और राजा एवं देवताओं को अपने सामने कुछ नहीं समझता था |सभी देवता एवं प्रजा वासियों को घोषित करा दिया था कि भगवान के स्थान पर उसकी पूजा होनी चाहिए मंदिरों में भगवान को नहीं मेरे को पूजा|

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद था जो भगवान की भक्ति में लीन रहता था वह अपने आराध्य श्रीहत्वपूर्ण पर्व है होली पर्व वसंत ऋतु में मनाई जाती है होली का त्योहार रंगों का त्योहार है |होली की अग्नि तैयार करने के लिए गांव एवं आसपास के मोहल्ले के लोग गली के चौराहे पर लकड़ियों का ढेर एवं उपले को इकट्ठा कर एवं पूजा करी जाती है|

और फिर शु विष्णु जी की पूजा अर्चना करता था और हिरण कश्यप को भी विष्णु की भक्ति में लीन रहने को कहता था इस बात से हिरण्यकश्यप  को क्रोध आ जाता था |हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को खुद जैसा बनाना चाहता था प्रहलाद ने अपने आप को ईश्वर भक्ति में लीन रखा था|

पिता के क्रोध की सीमा नहीं रही पिता ने अपने पुत्र को मरवाने का षड्यंत्र रचा उसने प्रहलाद को काल कोठरी में बंद करवा के छोड़ दिया एवं सांप छोड़ दिए |लेकिन कुछ नहीं हुआ प्रहलाद बच गया एवं पहाड़ी से धक्का दे दिया लेकिन प्रह्लाद हर बार बच जाता हिरण्यकश्यप अपनी बहन की याद आई उसकी बहन होलिका थी|

उसे वरदान प्राप्त था कि उसे आग एवं अग्नि जला नहीं सकती हेंडरसन ने अपनी बहन होलिका को आज्ञा दी वह पहलाद को आग में गोद में लेकर बैठ जाए |जिससे प्रहलाद अग्नि में जल जाए लेकिन ईश्वर की महिमा अपरंपार होती है पहलाद तो विष्णु जी की कृपा से बच गया होलिका जल गई इसलिए हर साल होलिका जलाई जाती हैऔर अगले दिन रंगों का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है|

2. क्यों मनाते हैं धूलंडी :-

अगले दिन धूलंडी का त्यौहार मनाया जाता है भारतवर्ष में इस दिन रंगों एवं गुलाल से होली खेली जाती है कई इलाकों में होली कीचड़ एवं लठमार होली भी खेली जाती है| होली मनाने के लिए भिन्न-भिन्न रंगों एवं रंगों को पानी में मिलाकर होली खेली जाती है|

होली इसलिए भी मनाते हैं कि होली के दिन ब्रज में श्री कृष्ण ने अपनी नगरी में गोपियों एवं नगर वासियों के साथ रंग उत्सव मनाने की परंपरा प्रारंभ की थी| तभी से इसका नाम फ़गवाह हो गया इसलिए होली फागुन मास में मनाई जाती है तथा इस दिन राधा ने श्री कृष्ण के ऊपर रंग डाला था|

पुराने समय की होली आज की होली से भिन्न-भिन्न थी  पुराने समय में चिकनी मिट्टी एवं मुल्तानी मिट्टी को शरीर पर लगाया जाता था एवं शाम को लोग अबीर और गुलाल आदि रंग एक दूसरे पर डालते हैं|